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नजर आया दूसरा हिंदुस्तान

prahar
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एआईसीसी की बैठक में राहुल भईया ने कहा कि छह सात वर्षों में जो उन्होंने देखा उसमें उन्हें दो हिंदुस्तान नजर आया एक गरीबों का एक अमीरों का। उन्होंने कहा कि अमीरों का हिंदुस्तान तो लगातार तरक्की कर रहा है, मगर गरीबों का हिंदुस्तान रुका हुआ है। उन्होंने उसे भी चलाने की बात कही साथ ही यह भी बता दिया कि यह काम सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। क्योंकि बाकी पार्टियों का जनाधार पूरे देश में है ही नहीं सभी एक दायरे में सिमटी हुई है और उनका नजरिया भी तंग है।

राहुल जी पिछले छह साल में गरीबों के घर गए, उनका खाना खाया, उनके साथ बातें कीं, उनका दर्द समझा। सरकारी लाव लश्कर छोड़कर लखनऊ से सुल्तानपुर तक प्राइवेट टैक्सी में ड्राइवर के साथ बैठकर चले गए।

बिहार के जो लोग बैरी टरेनवा से मुंबई और दिल्ली कमाई करने जाते हैं उन्हें समझने के लिए गोरखपुर से मुंबई तक ट्रेन की जनरल बोगी में सफर किया और लोगों से बातें की।

भारत को पढऩे के लिए यह सब किया जो स्वागत योग्य है। अब उन्होंने पत्ते खोलते हुए कहा कि उन्होंने दो हिंदुस्तान देखा उनकी बात सौ फीसदी सच है। गरीब अमीर दो खानों में बंटे हुए हैं। मध्यम वर्गीय वाले कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में आते जाते रहते हैं।

अफसोस की बात यह है कि जो बाते उन्हें बाई बर्थ (होश संभालते ही) जाननी चाहिए थी उसे समझने के लिए छह साल लगा दिए। बाई बर्थ इस नाते कह रहे हैं क्योंकि उनके पिता श्री राजीव भी ऐसे ही सुरक्षा नियमों को तोड़कर दूसरे हिंदुस्तान के पाले में जाते थे। उससे पहले राहुल की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी तमाम साल टुकड़ों-टुकड़ों में गरीबों को गले लगाया। तो क्या इन लोगों ने अपने बच्चे को देश के बारे में इतना भी नहीं बताया होगा? या बताने की जरूरत नहीं समझी होगी।

शायद यह उनका फंडा रहा हो लोगों के दिलों में स्थान बनाने का और जब बच्चों ने पूछा हो तो जवाब मिला हो कि राजनीति में यह सब भी करना पड़ता है। क्या पता राहुल भईया भी उसी राह पर हो।

राजीव गांधी ने तमाम वर्षों की राजनीति के बाद यह कहने का साहस किया कि जब वे केंद्र से एक रुपया देते है तो 15 पैसा ही मुकाम तक पहुंचता है। जाहिर है उन्हें अच्छी तरह पता था कि भ्रष्टाचार देश में किस कदर हावी है। मगर अमीरों के भारत को आगे बढ़ाने के लिए कंप्यूटर क्रांति ही देश में ला सके। घोटालों में तो उन्हें अपनी सरकार भी गंवानी पड़ी।

वही हाल आज भी है राहुल एक हिंदुस्तान से निकलकर कभी दूसरे हिंदुस्तान में चले जाते हैं थोड़ी वाहवाही मिलती है लोग तालियां बजाते हैं और फिर वापस अपने हिंदुस्तान में। नेहरू जी ने पद के लिए देश का बंटवारा मंजूर कर लिया। इंदिरा जी ने तो दूसरी पंक्ति भी नहीं बनने दी।

इसके उलट सोनिया जी ने पद छोड़ा तो देवी हो गईं कांग्रेसी उनकी पूजा कर रहे हैं। अब राहुल भी लगातार मंत्री बनने से मना कर रहे हैं और इन लोगों की ठीक नाक के नीचे झारखंड के मधु कोड़ा और कामनवेल्थ गेम्स में सुरेश कलमाड़ी ने जो हिंदुस्तान बनाया है वह नजर नहीं आया। जब गरीब देश की जनता का पैसा जब इन लोगों की टेंट में भर रहा था 35 रुपये का एक इलेक्ट्रिक स्विच 12 सौ रुपये रोज के लिए किराए पर लिया जा रहा था तब कहां थी देवी जी और राहुल भईया। और जब पता चल गया तब भी सुरेश कलमाड़ी को पद पर बनाए रखा। तब बहाना था खेल खराब हो जाएगा। खेल हो गया तब भी बेशर्म …….. कलमाड़ी को आभार भाषण के लिए बुलाया गया और लोग तालियां बजाते रहे।

नाटक करना छोड़ो राहुल भईया काम करो।

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