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सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों दो ऐसे फैसले दिए
जिनके लिए न्यायमूर्ति काटजू व ज्ञान सुधा मिश्रा की
पीठ को बार-बार प्रणाम करने का मन हो रहा है।
एक फैसला था भ्रष्टाचार के एक आरोपी का दूसरा
था दहेज हत्या का। न्यायालय ने फैसला जो दिया
वह तो कोर्ट का कर्तव्य मगर फैसले के वक्त कोर्ट ने
जो सलाह निचली अदालतों और कार्यपालिका को दिया
उसकी जितनी भी तारीफ की जाय वह कम है।
मगरमच्छों को पकड़ो। आय से दो लाख ज्यादा रखने
के मामले में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
अदालत ने भ्रष्टाचार वाले मामले में आरोपी को बरी
करते हुए कहा था कि छोटी मछलियों पकड़ने से
कोई फायदा नहीं। इशारा था मधु कोड़ा और सुरेश
कलमाड़ी सरीकों को जेल में डालने का। इसके साथ
ही कोटर् ने एक चुटीली टिप्पणी यह भी कर डाली
कि अगर ऐसे लोगों को जेल में डालोगे तो देश भर
की जेलें प्रशासनिक अधिकारियों से भर जाएंगी।
इसी तरह दूसरा फैसला दहेज हत्या का था
जिसमें मां बेटे ने बहू को गला घोटकर मार डाला
था और उसे जला दिया था। इस मामले में एक
अदालत ने उसे आजीवन कारावास दिया था,
जिस पर दूसरी ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर
दिया था।इस मामले को स र्वोच्च न्यायालय
ने गंभीरता से लेते हुए कहा कि दहेज हत्याओं का
ग्राफ देश में तेजी से बढ़ रहा है। जरूरत है कि
सख्त कदम उठाए जायं।
पीठ ने यहां तक कह दिया था कि ऐसे लोगों को
फांसी की सजा देनी चाहिए। न्यायालय ने बहस
के दौरान कहा कि लोग शादी करते हैं ढेर सारा
दहेज लेते हैं फिर और दहेज की मांग करते हैं।
मिला तो सिलसिला चल जाता है वर्ना विवाहिता
की किसी न किसी तरह हत्या कर दूसरी शादी की जाती
है और फिर ढेर सारा दहेज लिया जाता है।
कोर्ट ने दहेज के मामले में कड़े फैसले लिए जाने की
वकालत की और कहा कि ऐसे लोग मानव नहीं दानव
हैं जिन्हें फांसी दी जानी चाहिए। कोर्ट ने ताजा मामले
में आरोपियों पर धारा 302 न लगी होने के बावजूद
आजीवन कारावास की सजा दी और कहा इन्हें तत्काल जेल में डालो।
इसके पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने भष्टाचारी के
पक्ष में मुकदमा लड़ रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता को
कोर्ट ने अपनी सीमा से आगे जाकर यह सलाह दी थी कि
आप जैसे सीनियर अधिवक्ता को समाज के दुश्मनों के
पक्ष में नहीं खड़े होना चहिए। इस पर उन अधिवक्ता
ने भविष्य़ में ऐसे मामलों से बचने का वादा किया था।
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