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सख्त न हुए तो खो देंगे काश्मीर

prahar
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देश के दुश्मनों से प्यार की बात मुझे तो समझ नहीं आती।क्योंकि काश्मीर में आतंक फैलाने वालों को भोला भाला नागरिक जिसे बहलाया गया है ऐसा समझना बड़ी भूल होगी। क्योंकि काश्मीर के वाशिंदे अपने जन्म से ही हिंसा को झेल रहे हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि वो क्या चाह रहे हैं। उन्हें भारत पाकिस्तान का रवैया भी पता है।काश्मीर में देना ही होगा गोली का जवाब गोली क्यों अब पाकिस्तान के साथ ही चीन भी वहां भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गया है। ये दोनों देश ऐसे हैं जिन्हें प्यार की भाषा समझ नहीं आती। राहुल गांधी ने उमर अब्दुल्ला को और समय देने की वकालत की है। राहुल केंदऱ की सत्ता की धुरी हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि काश्मीर की समस्या का हल नहीं होने वाला चाहे कितना ही समय दे दिया जाय़। क्योंकि राहुल के पिता और तत्काली प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने फारूख अब्दुल्ला को न जाने कितनी बार समय दिया होगा और उससे पहले राहुल की दादी और राजीव की अम्मा श्रीमती इंदिरा गांधी ने पहले उमर के पापा और तत्कालन मुख्यमंत्री फारूख और फारूख के पापा शेख अब्दुल्ला को समय दिया होगा। उससे भी पहले राहुल के पापा के नाना जवाहर लाल ने शेख अब्दुल्ला को समय दिया होगा। मगर नतीजा क्या निकाला यही ना कि हालात बद से बद्तर हो गए। कांंग्रेस एक काम और करती है वह यह कि जब बवाल बढ़ता है लोग सरकार पर आरोप लगाने लगते हैं तो एक संसदीय दल का गठन कर दिया जाता है जो वहां जाकर लोगों से मिलेगा और हालात का जायजा लेगा। बाद में दल कि रिपोर्ट पर योजना बना कर कार्रवाई करेगा। यह सब आम जनता को शालीन शब्दों में कहें तो बेवकूफ बनाने का धंधा है। आखिर जब घाटी में आर्म्ड पुलिस फोर्स घुसने का साहस नहीं कर पा रही है। सेना के हाथ पांव फूले हुए हैं तब को संसदीय दल वहां के फाइव स्टोर होटलों रहने काश्मीर की वादियों में मौज करने और सरकार के नुमाइंदों से बात करने का नाटक करने के अलावा क्या करेगा। मैं राहुल को नाटक का हिस्सा नहीं बता रहा हो सकता है उमकी उमर से बात हुई हो और वे कोई कमाल कर दिखाएं, जिसकी कोई उम्मीद नहीं है।काश्मीर समस्या का हल वैसे ही करना होगा जैसे पंजाब समस्या का किया गया। काश्मीर में भी केंद्र को सत्ता हाथ में लेकर विध्वंस में शामिल होने वालों को कड़े दंड देने होंगे और इसके साथ ही अफजल गुरू जैसे आतंक के रहनुमाओं को फांसी पर लटकाने का साहस दिखाना होगा। वह भी अंजाम की परवाह किए बिना। वैसे राहुल से देश के तमाम लोगों के साथ ही हमें भी काफी उम्मीदें हैं।
वर्ना जय हिंद हमलोग कहेंगे तो जरूर मगर दबे मन से।

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