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समाज को जोड़ते हैं पर्व

prahar
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आज टीवी और अखबारों में देखा तो गणेशोत्सव की धूम नजर आयी। देहरादून, दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों के साथ ही छोटे छोटे कस्बों तक में लोग उत्सव की तैयारी में हैं। अच्छी बात है इससे हमारे सामाजिक सरोकार बढ़ेंगे और हम व्यस्त होने के बाद भी अपने मुहल्ले के लोगों से जुड़ सकेंगे। जैसे अलग अलग लकड़ियों को आसानी से तोड़ा जा सकता है वैसे ही समाज में एकाकी रह रहे लोगों पर भी संकट तेजी से हावी हो सकता है। समूह में अगर जुड़ कर रहे तो तमाम समस्याएं आसानी से हल हो जाएंगी। किसी आयोजन के लिए मुहल्ले के लड़के चंदा मागने आते हैं तो मन होता है जैसे तैसे टालो इन्हें लेकिन अगर उन्हें थोड़ा बढ़ावा दिया जाय तो परिणाम अच्छा हो सकता है। महाराष्ट्र के साथ ही देश के तमाम हिस्सों में इन दिनों गणेशोत्सव की धूम है। महराष्ट्र में गणेश पूजा छत्रपति शिवाजी ने जब मुगलों का शासन था तब हिंदुओं को जोड़ने के लिए प्रारंभ की थी जो बाद में भी चलती रही। बाद में जब अंग्रेजों का शासन आया लोगों में एक जुटता नहीं थी। खासकर दक्षिण भारत में तब लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव को पुनर्जीवित किया। इस उत्सव में भारी जनसैलाब उमड़ने लगा। लोगों को जुड़ते देख अंग्रेजों ने इस आयोजन को प्रतिबंधित करने की कोशिश की जो उल्टी पड़ी। इस उत्सव के माध्यम से ही देश को कई वीर क्रांतिकारी मिले जो आगे चलकर अंग्रेजी हुकूमत के लिए मुसीबत बने। आज एक बार फिर से देश के तमाम हिस्से अलगाववाद एवं नक्सलवाद की की आग में जल रहे हैं। ऐसे लोगों का मकसद जो भी हो मगर नुकसान हर हाल में निचले तबके के लोगों का हो रहा है। इन सब का अंत तभी संभव है जब लोगों का एक दूसरे से जुड़ाव हो और लोग अपनी समस्याएं एक दूसरे से शेयर करें क्योंकि बड़े शहरों को छोड़िए अब छोटे शहरों में भी लोग यह नहीं जानते कि पडोस के घर में कौन रहता है। रहने की अगर जानकारी हो भी तो उसकी समस्याएं नहीं पता होती। दो दिन पहले की बात है बच्चों को भूख से बिलखते न देख पाने के कारण उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर में एक महिला ने फांसी लगाकर जान दे दी। यह एक ऐसी घटना है जो सरकार के साथ ही समाज को कलंकित करने वाली है। मगर लोगों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही। क्योंकि लोगों का एक दूसरे से सरोकार घट रहा है। इसे रोकने और लोगों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। अगर गणेशोत्सव और दुर्गा पूजन जैसे आयोजन इसमें थोड़ा भी सहयोग करते हैं तो देश समाज के लिए अच्छी बात होगी। तमाम बार ऐसी घटनाएं होती हैं जब हमारे पड़ोस में या शहर में रहने वाला कोई जिसे हम रोज आते जाते देखते हैं और वह पकड़ा जाता है और पुलिस खुलासा करती है कि वह बड़ा आतंकवादी था अथवा नक्सलवादी ग्रुप का कमांडर था। अगर हमारे सरोकार ज्यादा होते तो ऐसे तत्व समाज के बीच में आकर रहने का साहस ही नहीं कर सकते।

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